भाईचारा है हमारा उद्येश्य चाहे अलग - अलग हो हमारे भेष। भाईचारा है हमारा उद्येश्य चाहे अलग - अलग हो हमारे भेष।
अपनी बस्ती भर रही है उनसे जिनकी दौलत से बस यारी। अपनी बस्ती भर रही है उनसे जिनकी दौलत से बस यारी।
हम दो, हमारे दो, तो सबके ही दो...। हम दो, हमारे दो, तो सबके ही दो...।
झूठे समाज के लोग...। झूठे समाज के लोग...।
रोज़ बेचते ईमान देखा...! रोज़ बेचते ईमान देखा...!
महंगाई के बारे में एक कविता...। महंगाई के बारे में एक कविता...।